हर तरफ सवाल उठ रहे हैं कि इन दिनों भारत में हर क्षेत्र में, भ्रष्टाचार चरम पर है,क्या आजादी के बाद राजनेतिक ठोस उपाय में और सामाजिक जागरूकता में आई नेतिक मूल्यों में गिरावट इसके मूल कारण बनते गए हैं और आज इसके निवारण के लिए भी यह इच्छा शक्ति रचनात्मक तरीकों से जगाने का कारण बनने की बजाय यह निहित अहंम का कारण बनकर जनता के दिलों में भी विहीन स्थान नही बना पा रहा है क्या यह केवल जन लोकपाल के शसक्त कानून से मिटेगा या आस्था और सदाचार के नेतिक धर्म से मिटाया जायेगा भ्रष्टाचार चरम को एक अहम सवाल का विषय रास्ट्रीय मन तेयार करने की बहस को नही छू पा रहा है ?
इस दिशा में हमारा अतीत इससे चिंतित नही था या राजनेतिक माहोल नही बन सका यह विचार भी आज की परिस्थिति में अतीत के उन तमाम अटकलों व उन कठिनाइयों को समझने का और गलतियाँ ना दोहराने का सोचने का खास विषय है क्योंकि अब हमे उस पर चलनेवाली लकीर पीटने की बजाय या उसपर राजनीती करने की बजाय हर प्रकार के राजनेतिक माहोल को सहयोगात्मक प्रयाश की इस दिशा में बदलने के लिए प्रेरित करने कराने को तेयार होना है जिससे इस कार्यवाही में जनमन का साफ माहोल बनाने को गहनता से विचार संकल्प पैदा हो सके | यह सोचना समझना आवश्यक है कि यह कठिनाईयां आने वाले समय में किसी भी राजनीतीज्ञ सत्ता मंच को समाधान को अड़चन पैदा ना हो सके | दूसरी बात राज्यों में लोकायुक्त की पहल की निष्ठा अपनी राजनेतिक जरूरतों को जन भावना का सम्मान करते विधेयक को हर सरकार के लिए भी जटिलता की जगह इच्छा शक्ति जागृत करने वाला मार्ग मजबूती से रास्ता बनाये ताकि अन्य राज्य बी ही बेहतर विकल्प के अनुसरण पर आगे आ सकें | यह विषय जनहित के हों नाकि सामाजिक आस्था पैदा करने में संकट ना बन सके के सुझाव पर गौर हो राज्य को उसकी राजनेतिक आस्था बनाने में विवाद अडचन ना पड़ती रहे पर गहराई से झांकना जरूरी हो होना चाहिए ताकि देश की सरकार को राज्यों के निवारण कानून से नेतिक माहोल का सिम्बल व साहस मिल सके |
आज की संकट मय रास्ट्रीय मनोदशा में अब यह सवाल भी अहम और खास है कि जो इस दिशा में भागीरथ बनना चाहते हैं उन्हें भी अपनी तपस्या को पाक साफ केवल जन आस्था जागृत करने का तपोबल देश के आगे प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उनका परमार्थभाव कलंकित इतिहास ना बन कर अन्य के लिए भी बाधक बनकर खड़ा ना हो जाये जिसपर जन आस्था जीवित करने में रुकावटें बनती हैं यह देश को व उसकी सरकार को इस और जोड़ने की बजाय विवादों में घसीटती ही नजर आने वाली परिस्थितियाँ ना बने सोचना ही होगा ,यह सिलसिला हर बनने वाली सरकार के लिए कठिनाई ही देगी जो अपनी सत्ता से करिश्मा दिखाने को उत्सुक होंगी |
भारत का इतिहास दुसरे दशक में पंडित जवाहरलाल नेहरु शासन और लालबहादुर शास्त्री जी के युग से लेकर इन्द्रा जी के शासन में ग्रहमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा जी की पीढ़ा इतिहास के पन्नो में इमानदार पहल ने जो पीढ़ा भोगी वह काफी रोचक और नसीहत के लिए काफी है मगर नंदा युग में ग्रह मंत्रालय ने जो इच्छा शक्ति जगाई और उन कदमो से सत्ता शासन और समाज की भागीदारी बनी और बन सकती थी आज भी वही प्रयास सदाचार की संयुक्त पहल दोहराने में कोई हर्ज नही हो सकता यदि उस मुद्दे पर साफ बहस होकर रास्ता बने और राजनेतिक माहोल की हर परिस्थिति से मुकाबला करते संकल्प सहभागिता की मान्यता मिले तो रास्ते आसान होते दिख सकते हैं |इस कार्य में संयुक्त सदाचार के अभियान में सत्ता और समाज की जन सहभागिता का नंदा इतिहास दोहराना होगा
अन्ना हजारे जी या बाबा रकम देव जी की टीम की योग्यताएं और भावना पर एकात्मक प्रयास कौसल पर ऊँगली ना उठे और यदि उठ गई है तो गलती सुधर सकती हैं अहम हटने के बाद इस रास्ट्रीय जटिल विषय को सुलझाने में रास्ता नही बन सकता है शायद ऐसा सोचना गलत हो, मगर टकराने वाले अहम रास्ट्रीय हित साधने में आस्था को चोट लगने वाले कारण हमे बाधा ही पहुंचाते रहेंगे |क्या ये सब सोचने और एक सफल प्रयास आगे बड़ाने का प्रयोग देश का जागृत जीवित समाज का नेतत्व खड़ा होता दिखना चाहिए जिससे कुछ हल निकलता नजर आये इससे सत्ता और तमाम राजनीती और अन्य उपयोगी मानवतावादी शक्तियों का उपयोग इस पहल में शक्ति का विवेक व्यर्थ जाने से बचेगा |
एक बात साफ है कि अबतक अन्ना जी के पहले अनशन कि नियत से साफ है कि कोई भी आन्दोलन आज कि परिस्थिति में गांधीवाद का सच्चा सतत प्रयोग ही रास्टीय जनमन को सदाचार के रास्ते से ही हिंसा मुक्ति प्रयास ही समाधान निकालने व जनमन को जोड़ने स्थिर रखने में सफलता का कर्क बन सकता है साबित किया जा चूका है उस रास्ते में और सुधारों और विवाद रहित माहोल बनाने कि गुंजाईश बननी चाहिए जिससे कि सत्ता और राजनीती से लेकर आन्दोलन का नेतत्व करने वाले महारथियों से इस गम्भीर बीमारी के इलाज के लिए संकट मय जनता को किसी से भी ठगा जाना ना लग सके तब ही कुछ रास्ते बनकर नागरिक समाज का प्रयास अपनी समर्पण सहभागिता कि उपलब्धियां सामने लाने में सफल हो सकेगा |
लेखक -के.आर.अरुण भारत रत्ना गुलजारीलाल नंदा के प्रमुख शिष्य व गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन की समाज कार्य अनुसन्धान टीम प्रमुख हैं -