65 साल के प्रोड भारत की राजनेत्तिक शक्ति का उदय होने की सामाजिक एवं अध्यात्मिक जागरण की आवश्यकता आ गई है ।लगता है इसके बिना आजादी के सपनों का लोकतंत्र और उसकी धर्मनिरपेक्षता का मतलब साकार करने की कोशिश पूरी हो पाना असम्भव है । हमे उन भागीरथों को जुटाना होगा जो वास्तव में किसी व्यक्तिगत स्वार्थ प्रेरित राजनेतिक कारणों से दूर रहकर वास्तव में समाज के दिशा सचेतक प्रहरी हैं ।आज वास्तव में देश को एइसे समाज प्रेरित राजनेतिक संदेश की आवश्यकता है जिससे लगे की लोकपाल और कालेधन जेसे से घिरा देश गारंटी शुदा समय सीमा में रास्ता बनाने में सफल होगा ।
हम देख रहे हैं की रास्ट्रीय कार्यों के सम्पादन में आई गिरावटों को दूर करने के लिए जिस सामाजिक असंतोष को दूर करने की राजनेतिक शक्ति से बना तन्त्र विकसित करने की रचनात्मक सुझबुझ को वह बल नही मिल पा रहा है जिसकी इस देश को अभी खास आवश्यकता है ।जन संकट के उपजते सवालों को सुलझाने के तरीके भी साकार करने के विस्वाश की परम्परा नही पा रही है इसी कारण देश वाशियों के बीच सत्यमेव जयते का अर्थ साकार करना एक कठिन रास्ता तो नही सुझबुझ से जुड़ा नही बन पा रहा है जबकि हम भारत की जनशक्ति को विश्वशक्ति बनाने की नियत की रचनात्मक राजनिति जगाने की जरूरत की आवश्यकता पर की वजह से नही जुड़ प् रहे हैं ।
देश में स्वाधीनता मिलते ही हमने नये भारत की नीव जिन सिद्दांतों को लेकर आजादी की लड़ाई में खाई कसमो और कुर्बानियों के महत्व
हम देख रहे हैं की रास्ट्रीय कार्यों के सम्पादन में आई गिरावटों को दूर करने के लिए जिस सामाजिक असंतोष को दूर करने की राजनेतिक शक्ति से बना तन्त्र विकसित करने की रचनात्मक सुझबुझ को वह बल नही मिल पा रहा है जिसकी इस देश को अभी खास आवश्यकता है ।जन संकट के उपजते सवालों को सुलझाने के तरीके भी साकार करने के विस्वाश की परम्परा नही पा रही है इसी कारण देश वाशियों के बीच सत्यमेव जयते का अर्थ साकार करना एक कठिन रास्ता तो नही सुझबुझ से जुड़ा नही बन पा रहा है जबकि हम भारत की जनशक्ति को विश्वशक्ति बनाने की नियत की रचनात्मक राजनिति जगाने की जरूरत की आवश्यकता पर की वजह से नही जुड़ प् रहे हैं ।
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