गाँधीवाद के मूल मंत्र का सार समाजवाद और नेतिक और अध्यात्मिक तत्व से भारतीय राजनीती का महत्व से भारत का लोकतंत्र विश्वापटल पर अपनी गोरव मयी पहचान देने की मनसा रखने वाले माननीय नेता गण यदि आज के दिन रास्ट्र पिता के बलिदान दिवस पर कुछ सिद्धांतों पर भी सदाचार को अपनाने का संकल्प ले लें तो निश्चय ही भारत गाँधी मार्ग से समाज में राजनेतिक परिद्रश्य बदलता नजर आ सकता है और देस और उसकी राजनीती भारत में सामाजिक प्रश्नों के हल निकलते नजर आएगी और करनी और कथनी के अंतर से बोनी होती राजनीती का कद बड़ना और चड़ना शुरू हो जायेगा,फिर किसी लोकपाल की आवश्यकता नही है जिसके लिए अन्ना जी बीमार होना पड़ रहा है और बाबा रामदेव जी को योग गुरु से कालेधन के मसले के लिए कालिख पुतवाने की नोबत लानी पड़ रही है,वास्तव में इन्हें भी गाँधी मार्ग की मूल भावना में आने की इमानदारी की आवश्यकता है,तब ये आसानी से जयप्रकाश नारायण जी के सपने को साकार करने में और आसानी मिलेगी ,जिसमे न थप्पड़ है न किसी का अपमान केवल हर किसी के लिए सम्मान जिसे कहते हैं ह्रदय परिवर्तन ?
देश की नई पीढ़ी को भारत की राजनीती और राजनीतिज्ञों में यदि लाल बहादुर शास्त्री जी और गुलजारीलाल नंदा जेसे भारत रत्नों के जीवन पर गौर करें तो गाँधी जी के बताये मार्ग पर १९२२ में श्रमिक राजनीती की जनसेवा से सदाचार का आचरण अपनाने वाले नंदा जी जो भारतीय श्रम चेतना की नेतिक राह बनाने के भागीरथ साबित हुए श्रम कानूनों को १९३९ से लेकर १९४७ तक बम्बई सरकार में मंत्री रहते कई आदर्श सहिताएं दी जिनमे गुमास्ता कानून और ओद्योगिक विवाद बिल,और भी कई श्रम कानून भी ओद्यगिक विकाश की राह में रुकावट दूर करने में समर्थ हैं वे कई देशों के अनुसरण का मार्ग बनी ,जब वे योजना आयोग के पहले वाइस चेयरमेन बने उन्होंने समाज के मूल्यवान वर्ग की भागीदारी से भारत के ग्राम जीवन की शक्तियों व संसाधनो व छमताओं के विकास के लिए कई योजनायें दी जिसका सामाजिक आधार बनाने के लिए कई स्वेछिक संगठनों और उसके नेत्व की छमता वाले समाज में आदर प्राप्त विद्वानों को चुना ताकि योजना बनाने के लिए विकास के धरातली स्वरूप को जाना जा सके और सरकार की किरयानवयन सक्ती में जागृत समाज की जन सहभागिता हो ,नंदा जी ने दूसरी पंच वर्षीय योजना पंडित जवाहर की सरकार के इरादों में गाँधी के सपनों के भारत नव निर्माण में समाजवादी अर्थ व्यवस्था और ओद्योगिक प्रगति के मार्ग को जीवित रखा ,यह योजना ८ अगस्त १९६१ में भारत की ओद्योगिक क्रांति का साकार रूप थी ,जिसपर देस की संसद और सरकार को भारत को दुनिया के आगे आजादी के सपनों के कदम साकार होते दिखने में कोई संदेह नही रह गया था जिसमे पड़ोसी देश की राजनीती का तिलमिलाना वाजिब था,क्यों की उसे भारत को अपना बाजार के रूप में पेठ बनाने की गुन्जैस बननी धुंदली दिखिती नजर आ रही थी और भारत ने तमाम विश्वास संधि के बावजूद १ ९६२ का युद्ध झेला और अंध विश्वास से सबक लिया .
कहने का मतलब गांधीवाद के सिद्दांत में वे सभी शक्तियाँ निहित हैं जिनसे भारत को समझने उसकी आंतरिक पीढ़ा के मर्म और प्रक्रति के मापदंड का सम्मान और मानव की प्रगति के पथ में एक दुसरे से अलग सोतेलेपन दिखाई देने की गूंजाइस न रह सके इस बात का राजनीती और सत्ता के हर शिखर में रहते नंदा जी सदाचार के पालन में स्वयम को जीवित रखा इसी लिए वे भारतीय राजनीती के भर्तहरी कहलाये आज देश की राजनीती में अकेले एसे नेता हैं जिनके जीवन आचरण के अनुसरण पर नेतिक कार्य के लिए गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसंन "नेतिक सम्मान" और राज्यों में समाज गोरव सम्मान देने की परम्परा है .भारत रत्ना नंदा गांधीवाद के साकार रूप ऐसे नेता हैं जिन्होंने २ बार प्रधान मंत्री पद की जवाबदेही ली और ३ बार भारत के ग्रह मंत्री रहे उन्होंने ग्रहमंत्री रहते लोकायुक्त और विजलेंस कमिसन दिए और लोकपाल बनने के रास्ते के साथ साथ सदाचार मन्त्र और बेहतर तन्त्र की व्यवस्था दी ,रेल मंत्री में मुगल सराय में भारी चोरी रोकने के लिए ११ सूत्रीय योजना दी और रेल विभाग को आदर्श कानून दिए ,सिचाई,विद्दुत,योजना,खाद्दयाँ सहित श्रम व रोजगार मंत्रालय में अपनी आदर्श योजनाओं व सहिंताओं के निर्माता जाने गये .वे एतिहासिक धरोहर विकास में हरियाणा में भगवान श्री कृशन की महाभारत रण भूमि के उजाड़ तीर्थों को विकास की गंगा देकर स्वयम को इस युग का आदर्श जनक साबित किया .देश ने उन्हें भारत रत्ना का सम्मान दिया ,वे पद्म भूषण से सम्मानित होने के साथ साथ नेताजी सुभास अलंकरण सहित अनुवर्त पुरस्कार सहित भारत के धर्म सम्राटों की संसद से राजरिसी के सम्मान सफेद कपड़ों वाले संत के रूप में भारत के पहले राजनीतिज्ञ को निष्कलंक छवि के लिए गोरव प्राप्त हुआ .
देश की नई पीढ़ी को भ्रह्स्ताचार मुक्त सभ्य आदर्श राजनीती से सज्जित भारत को सोपने का सपना वे नेतिक क्रांति की अलख भारतीय लोकमंच में १९७८ में स्थापित कर कुछ बुनियादी प्रयास के लिए देश वासियों को चेतना की दस्तक देते अपने १०० बसंत उन्होंने किराये के मकान में ही जीवन समर्पित किया वे वंशवाद से दूर अपने परिवार को अपनी संस्थाओं से भी दूर रखा .ताकि उन्हें कोई परिवार द्वारा लोलुपता का कारण न बनना पड़े .मुझे गर्व है उनका शिष्य होने पर क्यों की मैंने श्री राम ऐसे होते होंगे का युग पुरुष देखा और उनकी अपनाई गई गाँधी सक्ती के अनुसरण किया .मेरा प्रयास जनचेतना में यही है की जो गांधीवाद के मंच पर हैं वे समाज के बीच अपने गाँधी को सिमटने न दें क्यों की वह हर हिंसा के आवेश में भटकते अंधकार को विश्वास की ज्योति का प्रकाश है जो वास्तव में आज की राजनीती को भटकाव मुक्ति का मार्ग है क्यों की राजनेतिक सदाचार के बिना आजादी के सपनों का भारत नही बन सकता ,जिस उम्मीद पर भारत को दुनिया को रास्ता दिखाना है की हिंसा से विकास नही विनास है केवल अहिंसा ही धरातली विकास की संजीवनी है ?
के-आर०अरुण लेखक -गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसंन की समाज विकास एवं अनुसन्धान के चेयरमेन व भारत रत्ना नंदा के शिष्य हैं