Tuesday, 24 January 2012

लोकपाल के मुद्दे पर रास्ट्रीय बहस चुनावी समीकरण में निराशा जनक क्यों


 लोकपाल के मुद्दे पर रास्ट्रीय बहस चुनावी समीकरण में निराशा जनक क्यों -आज का सवाल आनेवाले कल में किसी भी बदलाव को लेकर अतीत में याद किया जायेगा क्योंकि -
जन लोकपाल के मुद्दे पर मुंबई में अन्ना जी का निरासा जनक प्रदर्शन ने साबित कर दिया की पब्लिक है पब्लिक सब जानती है का गीत सच साबित होकर निखर गया है ? अन्ना जी का और उनकी टीम का आरम्भ से हुई गलतियों ने देश के बुद्दीजीवियों को सोचने पर मजबूर कर दिया  फड उनके हल्ल्बोल कार्यक्रम किसी तूफ़ान के जाने की तरह देश में थम जाना अब आने वाले समय में एक के बाद एक कई तरह के सवाल खड़े करेगा ,जो जनता को निरास करेंगे ,  अब तक के अन्ना टीम के काम से जो निराशा आई है उससे जल्दी ही अब कोई माहोल जन सेलाब में उत्साह डालने वाला उभर कर आएगा नही लगता की जनता अब जनलोकपाल या लोकपाल की आवाज में अन्ना टीम की उन सुरुआती दौर की तरह जमावड़ा दे सके .
अन्नाजी ने जो राज्य से निकल कर यकायक रालेगन ग्राम को देश स्तर पर अपनी पहचान दी और अपनी  सहयोगी  टीम को अपना मुकाम बनाये रखने के लिए स्थान दिया था वह वजूद  अन्ना टीम का कौन रख पायेगा और कितना रहेगा भविष्य पर निर्भर है?  वास्तव में इस आन्दोलन की राह से बना यह मुकाम दीखते रहना चाहिए था जबकि वास्तव में इस आन्दोलन से जे.पी के आन्दोलन  के जिन्दा होने की जो तस्वीर दिखाई गई थी वह गांधीवाद के तरिकों मूल्यों से  राह से भटकने के कारण ये आन्दोलन केवल सिविल सोसाइटी न होकर ५ लोगों की की राय तक  की योजना में सिमट जाने से काफी निरास किया गया रास्ट्रीय भावना का एक स्वप्न टुटा लगता है .
    कई बार भारत रत्ना स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा के योगदान  से देस में २१ दिसम्बर १९६३ को आरम्भ हुई सदाचार जागरण के तरीकों व उन नीतियों को अपनाने की अन्ना टीम और सरकार से गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन और सहयोगी भारतीय लोकमंच का परामर्श इन्हें दर किनार करते देर नही लगी क्यों की सदाचार की राह बनाना इन्हें कठिन लगने से राजनर्तिक अवसरों  के जाने के बातें वर्तमान युग की गांधीगिरी की रह का रोड़ा समझने वाले भूल गए की गांधीवाद ही सदाचार केर मार्ग से भारतीय राजनीती और राजनीतिज्ञों के सुद्धि करण की राह बना सकती है जो नंदा जी ने राजनीती में अपने नेतिक जीवन से करके सदाचार का सम्मान लोकतंत्र में जीते जी हांसिल किया जो की आने वाले कल के लिए शोध का विषय होगा . 
   हम और देश जानता  है कि जबतक देस में सड़ी गली व्यवस्था में राजनेतिक सुद्दीकरण के सफल नेतत्व से जीवित समाज सम्पूर्ण बदलाव के लिए रास्ट्रीय बहस नही चलाएगा तबतक जन सहभागिता कि सोच और नेतिक क्रांति का ध्वझ लहराने कि राह स्थाई सपना कल्पना मात्र है ,जो लोग गांधीवाद के अस्त्र से बदलाव चाहते है उन्हें करनी कथनी के अंतर से मुक्त होकर अहंकार मुक्त हिंसा मुक्त मार्ग निकालना ही होगा क्यों कि देश कि आजादी नेतिकता मांग रही है .या कहिये कि कि रास्ट्रीय बिमारी इलाज मांग रही है इस लिए हमारे दलों व सामजिक मुद्दों व जन कल्याण के मार्ग के सम्पादन में आई गिरावटों को दूर किये बिना हम कोई वैकल्पिक दावा बदलावों को लेकर नही कर सकते जिससे कि हमारा भारत नवनिर्माण में विश्व को गुरुत्व का पैगाम दे सके .
  अन्ना टीम ने भर्स्ट व्यवस्था के खिलाफ संगठित होने कि ललकार ने छुब्द व्यवस्था से पीड़ित जनता को सुचना के अधिकार के मायने का रास्ता दिया है जोकि  अन्नावाद के अहंकार में ये आन्दोलन बदने कि जगह सिमट गया फिर भी लम्बे अरसे के बाद देस में बाबा रामदेव फार्मूला कालेधन और जन लोकपाल की  राह देने में अन्नावाद पीड़ित भारतीय समाज को खड़ा करने में राजनेतिक सोच का चेहरा सशक्त लोकपाल बिल की आवाज को रास्ते का मुसाफिर बनाकर छोड़ दिया है  केव;ल आजादी कि दूसरी लड़ाई का पैगाम  यह वर्ष 2011 की खास उपलब्धी रही है .
    मै कई बार भारतीय लोकमंच से संस्था के संस्थापक पूर्व प्रधान मंत्री  भारत रत्ना स्वर्गीय नंदा जी के सदाचार सद भावना आन्दोलन के सच्चे गांधीवादी आन्दोलन से ही राजनेतिक इरादों में सुद्धिकरण के मार्ग से रास्ता निकलने का  इशारा करता रहा ताकि  राजनेतिक इछासक्ती को रास्ते पर लाने के लिए हर्दय परिवर्तन का सदाचार देश में मानवता के वैज्ञनिकों को जीवित करने की ताकत के लिए तपोबल जागृत हो सके , इसके बिना जनादेस प्राप्त करने वाली पार्टियाँ और उनकी पतंगबाजी की उड़ान वाले हाथ नेतिक नियत का सुद्दी करण का कुछ रास्ता जरुर ही वोट बैंक बनाने के रास्ते का तरीका सायद ही अन्य विकल्प नेतिकता के दामन छु सके ?
    किसान की आवाज ,खेतिहर की आवाज ,कामगार और आम आदमी की आवाज ,प्ररशासनिक इंसाफ के दरवाजे से टकरा कर लौट जाने से असंतोष की आंधी पैदा होती आई है ,हमारी गिर्वेंस कमेटियां केवल खाना पूर्ति बनने से और सिटिजन चाटर नाकाबिल साबित होने से ऐसे आन्दोलन की राह बनते आये हैं ,राजनेतिक सत्ता इस खामी से बेखबर होना भी चुनाव के समय दलों के कार्यकर्ताओं को मुह की खानी पड़ती है इस बात की गहराई और विवेक का जागृत होना आवश्यक होता है ,बिजली ,पानी ,न्याय सुरकछा और आम आदमी की सुनवाई का रास्ता तत्काल न होना भी कमजोर नेतत्व के लिए जवाब देह लोग भी सरकार को कमजोर होने का संदेस देते हैं .इन बातों पर भारत रत्ना नंदा जी अपने कार्यकाल में मंत्रालयों में की नीतियाँ बनाई थी जिसपर प्रशासन तंत्र तत्काल कदम उठाने के लिए जवाबदेह हो सके .वे भारत के ३ बार ग्रहमंत्री रहते यादगार कदम उठाये उनपर सरकारों को शोध कराना चाहिए और अछे विकल्प देने चाहिए .ताकि योजनाये बे असर न हो सकें .यदि ये सब है तो लोकपाल की कहाँ अवस्कता रह जाती है .भारतीय लोकमंच इस सपने को साकार कराने लिए आन्दोलन रत है ताकि सम्विधान के प्रति आशाएं हर न्याय के दरवाजे से न उम्मीदी का आंसू टपकने की गुंजाईश समाप्त हो सकें .
.के.आर.अरुण प्रमुख संयोजक -भारतीय लोक मंच,संचालित गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन ईमेल नन्दैन्दिअ१०१@ rediffmail .com मोब.9802414328 

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