Sunday, 22 April 2012

भ्रष्टाचार चरम को केवल शसक्त कानून से मिटेगा या आस्था और सदाचार के नेतिक धर्म से मिटाया जायेगा ?गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन

हर तरफ सवाल उठ रहे हैं कि  इन दिनों भारत में हर क्षेत्र में, भ्रष्टाचार चरम पर है,क्या आजादी के बाद राजनेतिक ठोस उपाय में और सामाजिक जागरूकता में आई नेतिक मूल्यों में गिरावट इसके मूल कारण बनते गए हैं और आज इसके निवारण के लिए भी यह इच्छा शक्ति रचनात्मक तरीकों  से  जगाने का कारण बनने की बजाय यह निहित अहंम का कारण बनकर जनता के दिलों में भी विहीन स्थान नही बना पा रहा है क्या यह केवल जन लोकपाल के शसक्त कानून से मिटेगा या आस्था और सदाचार के नेतिक धर्म से मिटाया जायेगा  भ्रष्टाचार चरम  को एक अहम सवाल का विषय रास्ट्रीय मन तेयार करने की बहस को नही छू पा रहा है   ?
     इस दिशा में हमारा अतीत इससे चिंतित नही था या राजनेतिक माहोल नही बन सका यह विचार भी आज की परिस्थिति में  अतीत के उन तमाम अटकलों व उन कठिनाइयों को समझने का और गलतियाँ ना दोहराने का सोचने का खास विषय है क्योंकि अब हमे उस पर चलनेवाली लकीर पीटने की बजाय या उसपर राजनीती करने की बजाय हर प्रकार के राजनेतिक माहोल को सहयोगात्मक प्रयाश की इस दिशा में बदलने के लिए प्रेरित करने कराने को तेयार होना है जिससे इस कार्यवाही में जनमन का साफ माहोल बनाने को गहनता से विचार संकल्प पैदा हो सके | यह सोचना समझना आवश्यक है कि यह कठिनाईयां आने वाले समय में किसी भी राजनीतीज्ञ सत्ता मंच को समाधान को अड़चन पैदा ना हो सके | दूसरी बात राज्यों में लोकायुक्त की  पहल की निष्ठा अपनी राजनेतिक जरूरतों को जन भावना का सम्मान करते विधेयक को हर सरकार के लिए भी जटिलता की जगह इच्छा शक्ति जागृत करने  वाला मार्ग  मजबूती से रास्ता बनाये ताकि अन्य राज्य बी ही बेहतर विकल्प के अनुसरण पर आगे आ सकें | यह विषय जनहित के हों नाकि सामाजिक आस्था पैदा करने में संकट ना बन सके के सुझाव पर गौर हो राज्य को उसकी राजनेतिक आस्था बनाने में विवाद अडचन ना पड़ती रहे पर गहराई से झांकना जरूरी हो होना चाहिए ताकि देश की सरकार को राज्यों के निवारण कानून से नेतिक माहोल का सिम्बल व साहस मिल  सके   |  
      आज की संकट मय रास्ट्रीय मनोदशा में  अब यह सवाल भी अहम और खास है कि जो इस दिशा में भागीरथ बनना चाहते हैं उन्हें भी अपनी तपस्या को पाक साफ केवल जन आस्था जागृत करने का तपोबल देश के आगे प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उनका परमार्थभाव कलंकित इतिहास ना  बन कर अन्य के लिए भी बाधक बनकर खड़ा ना हो जाये जिसपर जन आस्था जीवित करने में रुकावटें बनती हैं यह  देश को व उसकी सरकार को इस और जोड़ने की बजाय विवादों में घसीटती ही नजर आने वाली परिस्थितियाँ ना बने सोचना ही होगा   ,यह सिलसिला हर बनने वाली सरकार के लिए कठिनाई ही देगी जो अपनी सत्ता से करिश्मा दिखाने को उत्सुक होंगी |
     भारत का इतिहास दुसरे दशक में पंडित जवाहरलाल नेहरु शासन और लालबहादुर शास्त्री जी के युग से लेकर इन्द्रा जी के शासन में ग्रहमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा जी की पीढ़ा इतिहास के पन्नो में इमानदार पहल ने जो पीढ़ा भोगी वह काफी रोचक और नसीहत के लिए काफी है मगर नंदा युग में ग्रह मंत्रालय ने जो इच्छा शक्ति जगाई और उन कदमो से सत्ता शासन और समाज की भागीदारी बनी और बन सकती थी आज भी वही प्रयास सदाचार की संयुक्त पहल दोहराने में कोई हर्ज नही हो सकता यदि उस मुद्दे पर साफ बहस होकर रास्ता बने और राजनेतिक माहोल की हर परिस्थिति से मुकाबला करते संकल्प सहभागिता की मान्यता मिले तो रास्ते आसान होते दिख सकते हैं |इस कार्य में संयुक्त सदाचार के अभियान में सत्ता और समाज की जन सहभागिता का नंदा इतिहास दोहराना होगा  
      अन्ना हजारे जी या बाबा रकम देव जी की टीम की योग्यताएं और भावना पर एकात्मक प्रयास कौसल पर ऊँगली ना उठे और यदि उठ गई है तो गलती सुधर सकती हैं अहम हटने के बाद इस रास्ट्रीय जटिल विषय को सुलझाने में रास्ता नही बन सकता है शायद  ऐसा सोचना गलत हो, मगर टकराने वाले अहम रास्ट्रीय हित साधने में आस्था को चोट लगने वाले कारण हमे बाधा ही पहुंचाते रहेंगे |क्या ये सब सोचने और एक सफल प्रयास आगे बड़ाने का प्रयोग देश का जागृत जीवित समाज का नेतत्व खड़ा होता दिखना चाहिए जिससे कुछ हल निकलता नजर आये इससे सत्ता और तमाम राजनीती और अन्य उपयोगी मानवतावादी शक्तियों का उपयोग इस पहल में शक्ति का विवेक व्यर्थ जाने से बचेगा |
    एक बात साफ है कि अबतक अन्ना जी के पहले अनशन कि नियत से साफ है कि कोई भी आन्दोलन आज कि परिस्थिति में गांधीवाद का सच्चा सतत प्रयोग ही रास्टीय जनमन को सदाचार के रास्ते से ही हिंसा मुक्ति प्रयास ही समाधान निकालने व जनमन को जोड़ने स्थिर रखने में सफलता का कर्क बन सकता है साबित किया जा चूका है उस रास्ते में और सुधारों और विवाद रहित माहोल बनाने कि गुंजाईश बननी चाहिए जिससे कि सत्ता और राजनीती से लेकर आन्दोलन का नेतत्व करने वाले महारथियों से इस गम्भीर बीमारी के इलाज के लिए संकट मय जनता को किसी से भी ठगा जाना ना लग सके तब ही कुछ रास्ते बनकर नागरिक समाज का प्रयास अपनी समर्पण सहभागिता कि उपलब्धियां सामने लाने में सफल हो सकेगा  |  
लेखक -के.आर.अरुण भारत रत्ना गुलजारीलाल नंदा के प्रमुख शिष्य व गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन की समाज कार्य अनुसन्धान टीम प्रमुख हैं -

Sunday, 4 March 2012

सदाचार के नेतिक द्व्झ का आचरण लेकर भारतीय राजनीती में गांधीवाद जीवित रखा भारत रत्ना नंदा ने

सदाचार के नेतिक द्व्झ का आचरण लेकर भारतीय राजनीती में गांधीवाद के मंत्र से प्रजा तन्त्र का आधार जीवित रखने वाली राजनीती के सिधान्तो को जीवित रखने में भारत रत्ना स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा itihas पुरुष हैं ।सरकार और अनुदान संस्थानों को उनके नामपर विस्वविध्यालय स्थापित कर पीढ़ी को आदर्श मार्ग देना चाहिए ।\के.आर.अरुण 

Tuesday, 28 February 2012

भारत के उमड़ते सामाजिक असंतोष की समाप्ति के लिए असली गांधीवाद ही विकल्प -नंदा फाउंडेसंन

भारत के उमड़ते सामाजिक असंतोष की समाप्ति के लिए असली गांधीवाद ही एक मात्र विकल्प साबित हो सकता है ,इसके लिए देश में रास्ट्रीय पर्यावरण मित्र वाहिनी के वैकल्पिक श्रोत की तलाश आरम्भ की जा रही है ताकि सदाचार की नेतिक राह से आम, जनमानस में भारत और भारतीयता के राष्टवादी गुणों में देश की मानवता वादी धर्म की मानवीयता के सदाचार गुण नै पीढ़ी के आगे समस्याओं  के समाधान का रास्ता निकल सके ।
     पूर्व प्रधानमन्त्री भारत रत्न स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा का राजनीतिग्य व सामाजिक जीवन गांधीवाद के नैतिक सिद्दांतों का सदाचार मूल्य पालन में अनूठा इतिहास साबित हुआ है । वे जटिल से जटिल परिस्थिति में भी वे पारिवारिक जटिलताओं के बावजूद किसी भी प्रलोभन या अन्य कारणों में विचलित नही हुये जबकि वे शिखर राजनेतिक पदों पर देश की सर्वोच्च सत्ता में केंद्र बिंदु थे । उन्होंने पंडित नेहरु के शासन में स्वाधीन भारत की सत्ता में आधुनिक भारत के नव निर्माण में कभी भी अपने राजनेतिक जीवन को किसी भी गुट के आगे आदर्शों को गांधीवाद के मूल सिधांत से नही भटकने दिया चाहे वे आने वाले कल के लिए अपने लिए अनुयाइयों की फौज न क्र पाए हों पर वे सदाचार के पालन में राजनेतिक जनसेवा मंच को आकाश कूसूम की तरह पवित्र बनाने  की राह से नही चुके ।
    देश में भारत रत्न नंदा को योजना प्रक्रिया का निर्माता भी जाना जाता है -वे पहली व दूसरी पंचवर्षीय योजना को आजादी के सपनों का भारत नव निर्माण की जनक्रांति की रचनात्मक सफलता का मन्त्र दिलाने में योजना आयोग के २ बार वाइस चेयरमेन के रूप में पंडित जवाहर लाल  नेहरु के शासन के विस्वसनीय द्व्झा थे ।वे देश  में समाजवादी अर्थ व्यवस्था में ओद्योगिक क्रांति की स्थापना के जनक भी बने । उन्होंने ही कांग्रेस को निति और रीती और निति में दल की सुधारवादी रचनात्मक दिशा तय करने के लिए १९६० के दुसरे दशक में गाँधी जी के मन्त्र से सत्ता के सिधांत को संजीवनी देने के लिए अपने अटल फैसलों से सत्ता शिखर दल को समाजवादी कांग्रेस फॉर्म के रूप में नया चेहरा दिया । वे भारत की आजादी की उन राहों  के संघर्ष में अपनी सहादत देने वालों  का चेहरा सामने रख कर ही निति और रीती का पालन कर अपने आधीन मंत्रालयों में कानून बनाने की प्रक्रिया के दूरगामी परिणामो में गाँधी सिधांत को सामने रखते थे ।उन्होंने अपने साहसिक निर्णायक कार्यकाल में अपने आधीन मंत्रालयों  में दुनिया के आगे अनुसरण करने वाली सहिताएँ दी ।वे गांधीवादी  श्रमिक राजनीती के जंनक के रूप जाने गये । इंटक जेसी श्रमिक संस्था के संस्थापक रहे नंदा जी ने श्रम  निति,योजना निति,के साथ साथ ग्रह मंत्रालय  व रेल मंत्रालय को कई विकल्प दिए ।
      भारत को लोकपाल व्यवस्था  दिलाने के लिए उन्होंने 1963 में काफी ठोस कदम उठाये जिससे कि भारत के आम आदमी को शासन कि निति और रीती से न्याय कि उम्मीदों से वंचित न होना पड़े इसके लिए उन्होंने लोकायुक्त ,और विजलेंस कमिसन जेसी संस्था लोकपाल के सिद्दांतो  कि कमी को पूरा कर  एक शोषण विहीन समाज व्यवस्था कि रह बनाने के लिए ग्रह मंत्रालय को कई विकल्प धरी विभाग दिए जिसके साथ साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़े पंडितों को सदाचार समितियों के गठन द्वारा देश को भारत सेवकों की जमात दी जो शासन की नीतियों को आम आदमी की राहत का विश्वास का मार्ग बन सके । इस योजना को वे राजनेतिक इछा सक्ति के जरिये समाज को जनप्रतिनिधियों  के विश्वाश की  ताकत पैदा करना कहते थे ताकि गांधीवाद से भारत अपनी अस्मिता को आजादी के सपनों का भारत बनने से विमुख न हो सके  ।
    आज भारत एक ऐसे पड़ाव में है जिसे राजनेतिक शाख  की गरिमा में नेतिक सिद्दांतों की आवश्यकता है जिसे केवल सदाचार के मन्त्र से ही गांधीवाद का अहिंषा यंत्र का  पाठ ही राजनेतिक प्रदूषण को केवल होनहार भागीरथ ही लोकतंत्र  को सच्चे पर्यावरण मित्रों की आवश्यकता है ताकि सामाजिक असंतोष को समाप्त करने में नेतिक ज्योति यात्रा में मानवता के वैज्ञानिक सम्पूर्ण बदलाव का जोश रास्ट्र वादी नागरिक भारत की राजनीती को अपनी रह बदलने के लिए आत्म विश्लेषण को विवश कर सकें तभी भारत स्वाधीनता के मूल्यों के संकल्प से भटकने के कारणों को दूर कर सकेगा ।       
लेखक - के.आर.अरुण - भारतरत्न नंदा के प्रमुख शिष्य एवं गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसंन की समाज कार्य एवं अनुसन्धान अकादमी  के चेयरमेन हैं ।

Sunday, 5 February 2012

देश को चाहिए "रास्ट्रीय आचरण सहिंता -नंदा फाउंडेसन

भारत नवनिर्माण की पहली तसवीर है जिसमे देश को चाहिए "रास्ट्रीय आचरण सहिंता "इसके बिना भारत कोई भी राजनेतिक जनसेवा के छेत्र में आदर्श उपलब्धी नही कर सकता ? देश में ये एक खास बहस का मुद्दा है जिसे गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन जीवित समाज के द्वारा लोकतंत्र के पहरेदारों के बीच चलाना चाहता है ताकि आने वाले भारत के मजबूत लोकतंत्र के लिए बात आगे बड सके ? 
      सदाचार के द्व्झा भारतरत्न गुलजारीलाल नंदा ज़ी  का राजनेतिक जीवन एक कठोर सत्य साबित हुआ है की सदाचार से राजनेतिक हर जटिलता दूर करने में नेतिक बल मिलता है और समाज का विस्वास अपने हितों की लढाई लड़ने वाले जनप्रतिनिधि में आस्था मजबुत होती है और ,विकास संगठनों में पारदर्शिता के खतरे सहित अन्य विफलताओं के खतरे दूर होते हैं ? गांधीवादी भारतीय श्रम राजनीती के जनक गुलजारीलाल नंदा ने अपने राजनेतिक जीवन में जिन मंत्रालयों में भी कानून बनाये वे दुनिया के लिए आदर्श साबित हुए ,उनपर यदि देश की सरकार शोध कराए तो योजनायें फलीभूत होंगी यदि तरीकों की बुनियाद के भागीरथ नेतिक हों तो सफलताएँ भारत के योजना आयोग को पिछड़ने नही देंगी ?
  के-आर-अरुण  चेयरमेन गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन समाज कार्य एवं अनुसन्धान केंद्र ,
 

Monday, 30 January 2012

rajnetik sdachar se hi gandhiwad ke muly jivit -nanda foundation

गाँधीवाद के मूल मंत्र का सार समाजवाद और नेतिक और अध्यात्मिक तत्व से  भारतीय राजनीती का महत्व से भारत का लोकतंत्र विश्वापटल पर अपनी गोरव मयी पहचान देने की मनसा रखने वाले माननीय नेता गण यदि आज के दिन रास्ट्र पिता के बलिदान दिवस पर कुछ सिद्धांतों पर भी सदाचार को अपनाने का संकल्प ले लें तो निश्चय ही भारत गाँधी मार्ग से समाज में राजनेतिक परिद्रश्य बदलता नजर आ सकता है और देस और उसकी राजनीती भारत में सामाजिक प्रश्नों के हल निकलते नजर आएगी और करनी और कथनी के अंतर से बोनी होती राजनीती का कद बड़ना और चड़ना शुरू हो जायेगा,फिर किसी लोकपाल की आवश्यकता नही है जिसके लिए अन्ना जी बीमार होना पड़ रहा है और बाबा रामदेव जी को योग गुरु से कालेधन के मसले के लिए कालिख पुतवाने की नोबत लानी पड़ रही है,वास्तव में इन्हें भी गाँधी मार्ग की मूल भावना में आने की इमानदारी की आवश्यकता है,तब ये आसानी से जयप्रकाश नारायण जी के सपने को साकार करने में और आसानी मिलेगी ,जिसमे न थप्पड़ है न किसी का अपमान केवल हर किसी के लिए सम्मान जिसे कहते हैं ह्रदय परिवर्तन ?    
        देश की नई पीढ़ी को भारत की राजनीती और राजनीतिज्ञों में यदि लाल बहादुर शास्त्री जी और गुलजारीलाल नंदा जेसे भारत रत्नों के जीवन पर गौर करें तो गाँधी जी के बताये मार्ग पर १९२२ में श्रमिक राजनीती की जनसेवा से सदाचार का आचरण अपनाने वाले नंदा जी जो भारतीय श्रम चेतना की नेतिक राह बनाने के भागीरथ साबित हुए श्रम कानूनों को १९३९ से लेकर १९४७ तक बम्बई सरकार में मंत्री रहते कई आदर्श सहिताएं दी जिनमे गुमास्ता कानून और ओद्योगिक विवाद बिल,और भी कई श्रम कानून भी ओद्यगिक विकाश की राह में  रुकावट दूर करने में समर्थ हैं वे कई देशों के अनुसरण का मार्ग बनी ,जब वे योजना आयोग के पहले वाइस चेयरमेन बने उन्होंने समाज के मूल्यवान वर्ग की भागीदारी से भारत के ग्राम जीवन की शक्तियों व संसाधनो व छमताओं के विकास के लिए कई योजनायें दी जिसका सामाजिक आधार बनाने के लिए कई स्वेछिक संगठनों और उसके नेत्व की छमता वाले समाज में आदर प्राप्त विद्वानों को चुना ताकि योजना  बनाने के लिए विकास के धरातली स्वरूप को जाना जा सके और सरकार की किरयानवयन सक्ती में जागृत समाज की जन सहभागिता हो ,नंदा जी ने दूसरी पंच वर्षीय योजना पंडित जवाहर की सरकार के इरादों में गाँधी के सपनों के भारत नव निर्माण में समाजवादी अर्थ व्यवस्था और ओद्योगिक प्रगति के मार्ग को जीवित रखा ,यह योजना ८ अगस्त १९६१ में भारत की ओद्योगिक क्रांति का साकार रूप थी ,जिसपर देस की संसद और सरकार को भारत को दुनिया के आगे आजादी के सपनों के कदम साकार होते दिखने में कोई संदेह नही रह गया था जिसमे पड़ोसी देश की राजनीती का तिलमिलाना वाजिब था,क्यों की उसे भारत को अपना बाजार के रूप में पेठ बनाने की गुन्जैस बननी धुंदली दिखिती नजर आ रही थी और भारत ने तमाम विश्वास संधि के बावजूद १ ९६२ का युद्ध झेला और अंध विश्वास से सबक लिया . 
    कहने का मतलब गांधीवाद के सिद्दांत में वे सभी शक्तियाँ निहित हैं जिनसे भारत को समझने उसकी आंतरिक पीढ़ा के मर्म और प्रक्रति के मापदंड का सम्मान और मानव की प्रगति के पथ में एक दुसरे से अलग सोतेलेपन दिखाई देने की गूंजाइस न रह सके इस बात का राजनीती और सत्ता के हर शिखर में रहते नंदा जी सदाचार के पालन में स्वयम को जीवित रखा इसी लिए वे भारतीय राजनीती के भर्तहरी कहलाये आज देश की राजनीती में अकेले एसे नेता हैं जिनके जीवन आचरण के अनुसरण पर नेतिक कार्य के लिए गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसंन "नेतिक सम्मान" और राज्यों में समाज गोरव सम्मान देने की परम्परा है .भारत रत्ना नंदा गांधीवाद के साकार रूप ऐसे नेता हैं  जिन्होंने २ बार प्रधान मंत्री पद की जवाबदेही ली और ३ बार भारत के ग्रह मंत्री रहे उन्होंने ग्रहमंत्री रहते लोकायुक्त और विजलेंस कमिसन दिए और लोकपाल बनने के रास्ते के साथ साथ सदाचार मन्त्र और बेहतर तन्त्र की व्यवस्था दी ,रेल मंत्री में मुगल सराय में भारी चोरी रोकने के लिए ११ सूत्रीय योजना दी और रेल विभाग को आदर्श कानून दिए ,सिचाई,विद्दुत,योजना,खाद्दयाँ सहित श्रम व रोजगार मंत्रालय में अपनी आदर्श योजनाओं व सहिंताओं के निर्माता जाने गये .वे एतिहासिक धरोहर विकास में हरियाणा में भगवान श्री कृशन की महाभारत रण भूमि के उजाड़ तीर्थों को विकास की गंगा देकर स्वयम को इस युग का आदर्श जनक साबित किया .देश ने उन्हें भारत रत्ना का सम्मान दिया ,वे पद्म भूषण से सम्मानित होने के साथ साथ नेताजी सुभास अलंकरण सहित अनुवर्त पुरस्कार सहित भारत के धर्म सम्राटों की संसद से राजरिसी के सम्मान सफेद कपड़ों वाले संत के रूप में भारत के पहले राजनीतिज्ञ को निष्कलंक छवि के लिए गोरव प्राप्त हुआ .
     देश की नई पीढ़ी को भ्रह्स्ताचार मुक्त सभ्य आदर्श राजनीती से सज्जित भारत को सोपने का सपना वे नेतिक क्रांति की अलख भारतीय लोकमंच में १९७८ में स्थापित कर कुछ बुनियादी प्रयास के लिए देश वासियों को चेतना की दस्तक देते अपने १०० बसंत उन्होंने किराये के मकान में ही जीवन समर्पित किया वे वंशवाद से दूर अपने परिवार को अपनी संस्थाओं से भी दूर रखा .ताकि उन्हें कोई परिवार द्वारा लोलुपता का कारण न बनना पड़े .मुझे गर्व है उनका शिष्य होने पर क्यों की मैंने श्री राम ऐसे होते होंगे का युग पुरुष देखा और उनकी अपनाई गई गाँधी सक्ती के अनुसरण किया .मेरा प्रयास जनचेतना में यही है की जो गांधीवाद के मंच पर हैं वे समाज के बीच अपने गाँधी को सिमटने न दें क्यों की वह हर हिंसा के आवेश में भटकते अंधकार को विश्वास की ज्योति का प्रकाश है जो वास्तव में आज की राजनीती को भटकाव मुक्ति का मार्ग है क्यों की राजनेतिक सदाचार के बिना आजादी के सपनों का भारत नही बन सकता ,जिस उम्मीद पर भारत को दुनिया को रास्ता दिखाना है की हिंसा से विकास नही विनास है केवल अहिंसा ही धरातली विकास की संजीवनी है ? 
    के-आर०अरुण  लेखक -गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसंन की समाज विकास एवं अनुसन्धान के चेयरमेन व भारत रत्ना नंदा के शिष्य हैं  
    

Tuesday, 24 January 2012

लोकपाल के मुद्दे पर रास्ट्रीय बहस चुनावी समीकरण में निराशा जनक क्यों


 लोकपाल के मुद्दे पर रास्ट्रीय बहस चुनावी समीकरण में निराशा जनक क्यों -आज का सवाल आनेवाले कल में किसी भी बदलाव को लेकर अतीत में याद किया जायेगा क्योंकि -
जन लोकपाल के मुद्दे पर मुंबई में अन्ना जी का निरासा जनक प्रदर्शन ने साबित कर दिया की पब्लिक है पब्लिक सब जानती है का गीत सच साबित होकर निखर गया है ? अन्ना जी का और उनकी टीम का आरम्भ से हुई गलतियों ने देश के बुद्दीजीवियों को सोचने पर मजबूर कर दिया  फड उनके हल्ल्बोल कार्यक्रम किसी तूफ़ान के जाने की तरह देश में थम जाना अब आने वाले समय में एक के बाद एक कई तरह के सवाल खड़े करेगा ,जो जनता को निरास करेंगे ,  अब तक के अन्ना टीम के काम से जो निराशा आई है उससे जल्दी ही अब कोई माहोल जन सेलाब में उत्साह डालने वाला उभर कर आएगा नही लगता की जनता अब जनलोकपाल या लोकपाल की आवाज में अन्ना टीम की उन सुरुआती दौर की तरह जमावड़ा दे सके .
अन्नाजी ने जो राज्य से निकल कर यकायक रालेगन ग्राम को देश स्तर पर अपनी पहचान दी और अपनी  सहयोगी  टीम को अपना मुकाम बनाये रखने के लिए स्थान दिया था वह वजूद  अन्ना टीम का कौन रख पायेगा और कितना रहेगा भविष्य पर निर्भर है?  वास्तव में इस आन्दोलन की राह से बना यह मुकाम दीखते रहना चाहिए था जबकि वास्तव में इस आन्दोलन से जे.पी के आन्दोलन  के जिन्दा होने की जो तस्वीर दिखाई गई थी वह गांधीवाद के तरिकों मूल्यों से  राह से भटकने के कारण ये आन्दोलन केवल सिविल सोसाइटी न होकर ५ लोगों की की राय तक  की योजना में सिमट जाने से काफी निरास किया गया रास्ट्रीय भावना का एक स्वप्न टुटा लगता है .
    कई बार भारत रत्ना स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा के योगदान  से देस में २१ दिसम्बर १९६३ को आरम्भ हुई सदाचार जागरण के तरीकों व उन नीतियों को अपनाने की अन्ना टीम और सरकार से गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन और सहयोगी भारतीय लोकमंच का परामर्श इन्हें दर किनार करते देर नही लगी क्यों की सदाचार की राह बनाना इन्हें कठिन लगने से राजनर्तिक अवसरों  के जाने के बातें वर्तमान युग की गांधीगिरी की रह का रोड़ा समझने वाले भूल गए की गांधीवाद ही सदाचार केर मार्ग से भारतीय राजनीती और राजनीतिज्ञों के सुद्धि करण की राह बना सकती है जो नंदा जी ने राजनीती में अपने नेतिक जीवन से करके सदाचार का सम्मान लोकतंत्र में जीते जी हांसिल किया जो की आने वाले कल के लिए शोध का विषय होगा . 
   हम और देश जानता  है कि जबतक देस में सड़ी गली व्यवस्था में राजनेतिक सुद्दीकरण के सफल नेतत्व से जीवित समाज सम्पूर्ण बदलाव के लिए रास्ट्रीय बहस नही चलाएगा तबतक जन सहभागिता कि सोच और नेतिक क्रांति का ध्वझ लहराने कि राह स्थाई सपना कल्पना मात्र है ,जो लोग गांधीवाद के अस्त्र से बदलाव चाहते है उन्हें करनी कथनी के अंतर से मुक्त होकर अहंकार मुक्त हिंसा मुक्त मार्ग निकालना ही होगा क्यों कि देश कि आजादी नेतिकता मांग रही है .या कहिये कि कि रास्ट्रीय बिमारी इलाज मांग रही है इस लिए हमारे दलों व सामजिक मुद्दों व जन कल्याण के मार्ग के सम्पादन में आई गिरावटों को दूर किये बिना हम कोई वैकल्पिक दावा बदलावों को लेकर नही कर सकते जिससे कि हमारा भारत नवनिर्माण में विश्व को गुरुत्व का पैगाम दे सके .
  अन्ना टीम ने भर्स्ट व्यवस्था के खिलाफ संगठित होने कि ललकार ने छुब्द व्यवस्था से पीड़ित जनता को सुचना के अधिकार के मायने का रास्ता दिया है जोकि  अन्नावाद के अहंकार में ये आन्दोलन बदने कि जगह सिमट गया फिर भी लम्बे अरसे के बाद देस में बाबा रामदेव फार्मूला कालेधन और जन लोकपाल की  राह देने में अन्नावाद पीड़ित भारतीय समाज को खड़ा करने में राजनेतिक सोच का चेहरा सशक्त लोकपाल बिल की आवाज को रास्ते का मुसाफिर बनाकर छोड़ दिया है  केव;ल आजादी कि दूसरी लड़ाई का पैगाम  यह वर्ष 2011 की खास उपलब्धी रही है .
    मै कई बार भारतीय लोकमंच से संस्था के संस्थापक पूर्व प्रधान मंत्री  भारत रत्ना स्वर्गीय नंदा जी के सदाचार सद भावना आन्दोलन के सच्चे गांधीवादी आन्दोलन से ही राजनेतिक इरादों में सुद्धिकरण के मार्ग से रास्ता निकलने का  इशारा करता रहा ताकि  राजनेतिक इछासक्ती को रास्ते पर लाने के लिए हर्दय परिवर्तन का सदाचार देश में मानवता के वैज्ञनिकों को जीवित करने की ताकत के लिए तपोबल जागृत हो सके , इसके बिना जनादेस प्राप्त करने वाली पार्टियाँ और उनकी पतंगबाजी की उड़ान वाले हाथ नेतिक नियत का सुद्दी करण का कुछ रास्ता जरुर ही वोट बैंक बनाने के रास्ते का तरीका सायद ही अन्य विकल्प नेतिकता के दामन छु सके ?
    किसान की आवाज ,खेतिहर की आवाज ,कामगार और आम आदमी की आवाज ,प्ररशासनिक इंसाफ के दरवाजे से टकरा कर लौट जाने से असंतोष की आंधी पैदा होती आई है ,हमारी गिर्वेंस कमेटियां केवल खाना पूर्ति बनने से और सिटिजन चाटर नाकाबिल साबित होने से ऐसे आन्दोलन की राह बनते आये हैं ,राजनेतिक सत्ता इस खामी से बेखबर होना भी चुनाव के समय दलों के कार्यकर्ताओं को मुह की खानी पड़ती है इस बात की गहराई और विवेक का जागृत होना आवश्यक होता है ,बिजली ,पानी ,न्याय सुरकछा और आम आदमी की सुनवाई का रास्ता तत्काल न होना भी कमजोर नेतत्व के लिए जवाब देह लोग भी सरकार को कमजोर होने का संदेस देते हैं .इन बातों पर भारत रत्ना नंदा जी अपने कार्यकाल में मंत्रालयों में की नीतियाँ बनाई थी जिसपर प्रशासन तंत्र तत्काल कदम उठाने के लिए जवाबदेह हो सके .वे भारत के ३ बार ग्रहमंत्री रहते यादगार कदम उठाये उनपर सरकारों को शोध कराना चाहिए और अछे विकल्प देने चाहिए .ताकि योजनाये बे असर न हो सकें .यदि ये सब है तो लोकपाल की कहाँ अवस्कता रह जाती है .भारतीय लोकमंच इस सपने को साकार कराने लिए आन्दोलन रत है ताकि सम्विधान के प्रति आशाएं हर न्याय के दरवाजे से न उम्मीदी का आंसू टपकने की गुंजाईश समाप्त हो सकें .
.के.आर.अरुण प्रमुख संयोजक -भारतीय लोक मंच,संचालित गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन ईमेल नन्दैन्दिअ१०१@ rediffmail .com मोब.9802414328 

Monday, 2 January 2012

"भ्रस्टाचार का भस्मासुर के खिलाफ पहली आवाज उठाने का श्रेय गाँधीवादी श्रमिक राजनीती के जनक "भारत रत्ना "स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा को जाता है .

"भ्रस्टाचार का भस्मासुर के खिलाफ पहली आवाज उठाने का श्रेय गाँधीवादी श्रमिक राजनीती के जनक "भारत रत्ना "स्वर्गीय गुलजारीलाल नंदा को जाता है .जितने मुखर प्रखर विरोधी नंदा जी ने १९६३ से लेकर १९६६ के मध्य केंद्र शासन में भारत के ग्रह मंत्री के रूप में इस बीमारी के खिलाफ स्थाई  इलाज का रास्ता निकाला और शासन और समाज को वैकल्पिक आधार बनाकर सदाचार जागरण की सीढ़ी देकर रास्ता निकाला था वह रास्ता आजतक अन्य कोई राजनेतिक नही निकाल पाया जिससे की देस की नई पीढ़ी को इस भयावह भ्रष्ट व्यवस्था में जीने का आदि होना पड़ता ? 
      भारत रत्ना गुलजारी लाल नंदा देस में पहले राजनीतिग्य ऐसे नेता थे जिन्हें सदाचार का ध्वझा का सम्मान जनत आ और संत समाज में मिला वे ही एक नेता थे जिन्होंने आजीवन गाँधी वाद के पद चिन्हों का पूरा अनुसरण करके जीवन के नेतिक सिधान्तों का पालन कर आनन्द लिया .वे सदाचार के रास्ते पर चल कर हर जटिल से जटिल कठिनाई का हंसते सामना करते थे ?वे सदाचार के रूप में मानवता के वैज्ञानिक थे,पूरी २० वीं सदी में वे अकेले ऐसे राजनेता रहे जिन्हें जनता के हकों का राजनेतिक विधुर कहा जाता था .
        उनकी बने गई नीतियाँ भविष्य कि सचेतक थी जिनसे देस को आदर्श और उर्जा के साथ साथ अमन के रास्ते पर चलने कि संजीवनी थी .चाहे वह श्रमनीति हो या ओद्योगिक विकास कि निति हो या फिर मिलावट खोरी कि समस्याओं का समाधान हो या फिर योजना आयोग में २ बार उन्होंने जिस प्रकार कि नीतियाँ दी उनसे मूल्यवान समाज सीधा जुड़ा था भारत के ग्रह मंत्री के रूप में वे लोकायुक्त ,विजलेंस कमिसन देने वाले भागीरथ साबित हुए .लोकायुक्त यदि सही ढंग से गठित हो कर काम करते तो आज लोकपाल कि आवश्यकता ही नही थी ? देस कि सरकार और राजनीतिज्ञों को ऐसे भारत रत्ना के सम्मान में "नंदा आदर्श योजना "का विस्तार कर उन्हें गुमनामी से निकलना चाहिए ,ना की उन्हें गुमनाम बनाने की भूल करनी चाहिए तभी आने वाली पीढियां त्याग का स्मरण करने वाले हर नेता आदर्श को भूल नही पायेगी .नंदा जी का जन्म दिवस ४ जुलाई और स्म्रर्ती दिवस १५ जनवरी सरकार कि नजर से ओझल हैं ताकि मिडिया के पेज उन्हें याद कर सकें ?
के.आर.अरुण टीम लीडर , समाज कार्य एवं अनूसंधान केंद्र "गुलजारीलाल नंदा फाउंडेसन "ईमेल -NANDAINDIA101 @रेडिफ मेल .कॉम